पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से 3 किलोमीटर दूर देवपाटन गांव में बागमती नदी के किनारे स्थित है। यह एक हिंदू मंदिर है जो पशुपतिनाथ का मुख्य निवास स्थान माना जाता है,
पशुपतिनाथ में सिर्फ हिंदुओ को ही मंदिर परिवेश में जाने की अनुमति है, गैर हिन्दुओ को जो की यह पर घूमने आते है उन्हें बागमती नदी के किनारे से ही यह के दर्शन करने होते है। उन्हें मंदिर परिवेश में जाने की अनुमति नही होती है। यहाँ पर शिवरात्रि पर बहुत बहुत बड़ा मेला लगता है और लोग दर्शन करने के लिए दूर -दूर से यह पर आते हैं। यह नेपाल में शिवजी का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। यह कहा जाता है जो भी यहा सच्चे मन से भगवान के दर्शन करता है तो उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है, और सबसे बड़ी बात तो यह है कि यहा या के ऐसा लगता है जैसे मनो आप 14वी सदी में आ गये है वही पुराने मकान सब वैसा ही है परंतु अब पहले से ज्यादा भीड़ के कारण यहा पर भी लोगो ने गंदगी फेलाना सुरु क्र दिया है, जिससे यह के वातावरण में बहुत परिवर्तन आ गए हैं। यह से सैलानी तथा शिवभक्त माउन्ट एवेरेस्ट का दीदार करते हैं।
इतिहास एवं किवदंतियाँ
इतिहास के अनुसार माने तो इस मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष तीसरी सदी में कराया था। माना जाता है कि नेपाल में स्थित ज्योर्तिलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस ज्योतिर्लिंग को पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंगके नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का हिस्सा है।पशुपतिनाथ के विषय में कथा है कि महाभारत युद्घ में पाण्डवों द्वारा अपने गुरूओं एवं सगे-संबंधियों का वध किये जाने से भगवान भोलेनाथ पाण्डवों से नाराज हो गये।भगवान श्री कृष्ण के कहने पर पाण्डव शिव जी को मनाने चल पड़े। गुप्त काशी में पाण्डवों को देखकर भगवान शिव वहां से विलीन हो गये और उस स्थान पर पहुंच गये जहां पर वर्तमान में केदारनाथ स्थिति है। शिव जी का पीछा करते हुए पाण्डव केदारनाथ पहुंच गये। इस स्थान पर पाण्डवों को आते हुए देखकर भगवान शिव ने एक भैंसे का रूप धारण किया और इस क्षेत्र में चर रहे भैसों के झुण्ड में शामिल हो गये। पाण्डवों ने भैसों के झुण्ड में भी शिव जी को नही पहचान पाये और वो शिवजी को ढूढ़ते रहे जब उन्हें शिवजी नही मिले तो भीम एक पहाड़ के ऊपर खड़े हो गये जैसे ही रात होने लगी सारे भैसें भीम के टांगों के नीचे से घर को निकले लगे परतु शिवजी तो भगवान थे वो ऐसा नही कर सकते थे, ये सब देखकर वो झुंड से दूर होने लगे तभी पांडवो ने उनको पहचान लिया तब शिव जी भैंस के रूप में ही भूमि समाने लगे। भीम ने भैंस को कसकर पकड़ लिया। भगवान शिव प्रकट हुए और पाण्डवों को पापों से मुक्त कर दिया।इसेभीपढ़े: इस हनुमान मंदिर के सामने खुद ही रुक जाती हैं ट्रेन, हादसे में बची थी सबकी जानइस बीच भैंस बने शिव जी का सिर काठमांडू स्थित पशुपति नाथ में पहुंच गया। इसलिए केदारनाथ और पशुपतिनाथ को मिलाकर एक ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है। पशुपतिनाथ में भैंस के सिर और केदारनाथ में भैंस के पीठ रूप में शिवलिंग की पूजा होती है।पशुपतिनाथ के विषय में मान्यता है कि जो व्यक्ति पशुपति नाथ के दर्शन करता है उसका जन्म कभी भी पशु योनी में नहीं होता है। जनश्रुति यह भी है कि, इस मंदिर में दर्शन के लिए जाते समय भक्तों को मंदिर केबाहर स्थित नंदी का प्रथम दर्शन नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति पहले नंदी का दर्शन करता है बाद में शिवलिंग का दर्शन करता है उसे अगले जन्म पशु योनी मिलती है।पशुपतिनाथ ज्योर्लिंग चतुर्मुखी है। इस ज्योतिर्लिंग के विषय में जनश्रुति है इसमें पारस पत्थर के गुण हैं जो लोहे को सोना बना सकता है। नेपाल वासियों और नेपाल के राजपरिवार के लिए पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग आराध्य देव रहे हैं।
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