Wednesday 15 February 2017

माँ गंगा के धर्ती पर आगमन की कथा

ये उस  समय की बात है, जब राजा चक्रवर्ती ने जन्म  लिया । जिन्हें सगर के नाम से पुकारा जाता है। जब इन्होंने  अशवमेघ यज्ञ किया तो उस यज्ञ के नियमानुसार यज्ञ का घोड़ा छोड़ा। यह घोड़ा स्वतंत्र विचरण करता हुआ जा रहा था कि भगवान इंद्र ने इसे पकड़कर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया । जब बहुत दिनो तक घोड़ा वापस नही आया तो उसकी खोज करना आरंभ कर दिया गया। महाराजा सगर के साठ हजार पुत्र घोड़े को बंधा देखकर क्रोधित हो गए । इस सारी माया से अलग होकर महात्मा कपिल अपने ध्यान में मग्न रहे।
महराज सगर के पुत्रों ने  क्रोधित उनसे घोड़ो को बाँधने का कारण पूछा परन्तु ध्यान मग्न महात्मा उनके सवालों का उत्तर नही दे पाये। जिस कारण वे कुपित होकर उन्हें उल्टा सीधा कहने लगे। कुछ समय बाद उनका ध्यान भंग हुआ । तो यह दृश्य देखकर उन्हें बहुत क्रोध आ गया । और उन्हीने राजा के साठ हजार  पुत्रो को भस्म कर दिया । अनेक वर्षों के बाद इनके कुल में भागीरथ ने जन्म लिया । जब उन्हें इस सारी कथा का पता चला तो अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिये उन्होंने केलाश पर्वत पर आकर अत्यधिक तपस्या की जिसके परिणाम स्वरूप माँ गंगा अविरल लोक कल्याण कर रही है।
गंगा तीन धाराओं में मृतयुलोक की तरफ बढी। जो धरा भागीरथ के पीछे आयी उसे भागीरथी कहते हैं।जो धारा श्रीमुख पर्वत के उत्तर की तरफ अलकापुरी को गयी उसे अलकनंदा  कहते हैं। जो धारा केदारनाथ को गयी उसे मन्दाकिमी कहते हैं।
मंदाकनी के दर्शन और स्पर्श से सम्पूण पाप विनिष्ठ होते है। भागीरथी का स्नान पूजनादि करने से मोक्ष प्राप्त होता है।और अलकनंदा का स्नान व पूजन करने से समस्त देवी देवता स्वयं कृपा करते है। गंगोत्रो में गंगा स्नान करके मुख्य मंदिर में दर्शन किये जाते हैं।जिसमे गंगा माँ की प्रतिमा है। 
पतित पवनी गंगा माँ का उद्गम स्थल गोमुख कहलाता है जो कि गंगोत्री से 28 km  की दुरी पर है।यहा पर स्वस्थ एवं साहसी लोगो को ही समुचित व्यवस्था करके जाना पड़ता है।

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