हमारा पूरा भारत देश ही तीर्थों का एक देश है , किन्तु उत्तराखंड के तीर्थों एक अपनी विशेषता और अपना एक महत्व है। इसका एक कारण गंगा माँ और हिमालय का पवित्र सहयोग है। हिमालय और गंगा का योगदान भारतीय संस्कृति सभय्ता व इतिहास में बहुत बड़ा महत्व रखता है।
तीर्थ वस्तुतः हिन्दू सांस्कृतिक अखण्डता के प्रतीक है।उत्तराखंड में सृष्टि के प्रारम्भिक काल से ही तीर्थो की परिकल्पना कर ली गयी थी। केदारनाथ धाम उत्तराखंड में ही विराजमान है । जिस कारण उत्तराखण्ड को केदार प्रदेश भी कहते है। और शिव को केदार नाम से भी जाना जाता है। केदारनाथ आनादि तीर्थ है । इसकी इतनी अधिक मान्यता है कि केदारनाथ कल्प ग्रन्थ में इसे 'देवानामपि दुर्लभम्' देवताओ के लिए दुर्लभ स्थान माना गया है।
केदारनाथ भारतवर्ष के द्वादश ज्योतिलिंगो में से एक है। शिव पुराण के अनुसार जब महाराज का युद्ध समाप्त हुआ तो भगवान वेदव्यास ने पांडवो को केदार की ओर गमन करने का आदेश दिया ताकि गौत्र हत्या के पाप से उन्हें मुक्ति मिल सके, किन्तु शिवजी उन्हें गोत्र का दोषी मानकर महिष रूप में भूमिगत होने लगे। भीम ने दौड़कर उनका पिछला भाग पकड़ लिया । और पांडवो की भक्ति और व्यकुलता को देखकर शिव ने उन्हें पूर्ण रूप में दर्शन दिए । तथा भीम द्वारा पकड़े गए पृष्ठ भाग की पूजा का आदेश देकर अंतर्धान हो गए। अग्र भाग नेपाल में प्रकट होकर पशुपति नाम से जाना जाता है। उस शिला के चार अन्य खंडित अंश उत्तराखण्ड चार संस्थालो पर प्रकट हुए। जो इस प्रकार से है बहु- तुंगनाथ में मुख - रुद्रप्रयाग में। नाभि- मदमहेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में। केदारनाथ सहित उत्तराखंड पंच केदार नाम से सुविख्यात है।
केदार आराधना में कहा गया है
जो महागिरी हिमालय के पास केदारश्रृंग के तट पर सदा निवास करते हुए मुनीश्वरो द्वारा पूजित होते है तथा देवता,असुर यक्ष और महान सर्प भी जिनकी पूजा करते है। उन एक कल्याणकारी भगवान केदारनाथ को में नमन करता हूँ।
तीर्थ वस्तुतः हिन्दू सांस्कृतिक अखण्डता के प्रतीक है।उत्तराखंड में सृष्टि के प्रारम्भिक काल से ही तीर्थो की परिकल्पना कर ली गयी थी। केदारनाथ धाम उत्तराखंड में ही विराजमान है । जिस कारण उत्तराखण्ड को केदार प्रदेश भी कहते है। और शिव को केदार नाम से भी जाना जाता है। केदारनाथ आनादि तीर्थ है । इसकी इतनी अधिक मान्यता है कि केदारनाथ कल्प ग्रन्थ में इसे 'देवानामपि दुर्लभम्' देवताओ के लिए दुर्लभ स्थान माना गया है।
केदारनाथ भारतवर्ष के द्वादश ज्योतिलिंगो में से एक है। शिव पुराण के अनुसार जब महाराज का युद्ध समाप्त हुआ तो भगवान वेदव्यास ने पांडवो को केदार की ओर गमन करने का आदेश दिया ताकि गौत्र हत्या के पाप से उन्हें मुक्ति मिल सके, किन्तु शिवजी उन्हें गोत्र का दोषी मानकर महिष रूप में भूमिगत होने लगे। भीम ने दौड़कर उनका पिछला भाग पकड़ लिया । और पांडवो की भक्ति और व्यकुलता को देखकर शिव ने उन्हें पूर्ण रूप में दर्शन दिए । तथा भीम द्वारा पकड़े गए पृष्ठ भाग की पूजा का आदेश देकर अंतर्धान हो गए। अग्र भाग नेपाल में प्रकट होकर पशुपति नाम से जाना जाता है। उस शिला के चार अन्य खंडित अंश उत्तराखण्ड चार संस्थालो पर प्रकट हुए। जो इस प्रकार से है बहु- तुंगनाथ में मुख - रुद्रप्रयाग में। नाभि- मदमहेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में। केदारनाथ सहित उत्तराखंड पंच केदार नाम से सुविख्यात है।
केदार आराधना में कहा गया है
जो महागिरी हिमालय के पास केदारश्रृंग के तट पर सदा निवास करते हुए मुनीश्वरो द्वारा पूजित होते है तथा देवता,असुर यक्ष और महान सर्प भी जिनकी पूजा करते है। उन एक कल्याणकारी भगवान केदारनाथ को में नमन करता हूँ।
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