Sunday 19 February 2017

केदारनाथ दैवीय आपदा



जैसा की हम सभी लोग जानते है कि 2013 में उत्तराखंड  में दैवीय आपदा आयी थी। जिस कारण पुरे केदारनाथ धाम में तबाही  मच गयी थी। केदारनाथ में पंडित  रोशन त्रिवेदी ने बताया कि तबाही का ऐसा ख़ौफनाक मंजर न कभी देखा और न कभी सुना।केदारनाथ में  कई होटल , धर्मशालाए , घर और बैंक का नामोनिशान मिट गया।
16 जून सुबह 8:30 बजे अचानक केदारनाथ मंदिर से 4km दूर गाँधी  सरोवर तेज आवाज के साथ फटा और और पूरे केदारनाथ  में बाढ़ आ गयी। जिससे बहुत से लोगो को अपनी जान गवानी पड़ी । यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोन से विचार करे तो आपदा के यह कारण हो सकते है।
हिमलयी क्षेत्रों में तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है।ग्लोबल वार्मिंग सबसे ज्यादा असर हिमालयी क्षेत्रों में  साफ देखा जा सकता है। जिस कारण वातावरण में अनेक बदलाव देखे जा रहे हैं।
चिराबाड़ी ताल ने केदारनाथ में तबाही की नींव रखी। 14 -15  जून को मूसलाधार बारिश के हीने के कारण  ग्लेशियर खंडित हो गए और ताल में पानी भरने लगा। ताल के अत्यधिक भरने के कारण 16 जून को उसने के नदी का रूप ले लिया और पूरे केदारनाथ को तबाह कर दिया न सिर्फ केदारनाथ को ही नुकसान हुआ, बाढ़ ने रुद्राप्रयाग तक अपना कहर ढाया।
समुद्र तल से 4096 मीटर की ऊँचाई पर स्थित  चौराबड़ी ताल की सूरत ही बदल गयी इस ताल में 1948 में महात्मा गाँधी की अस्थिया विसर्जित की गयी थी। तब से इस ताल को गांधी सरोवर के नाम से भी जाना जाता है। आपदा आने से 5 - 6 साल पहले यह ताल सूखकर दलदल में तबदील हो गया था। ताल का जल स्तर 1 से 3 मीटर तक गिर गया  कुछ समय बाद ताल पानी से भर गया और ये करिश्मा ग्लेशियर के पिघलने के कारण हुआ होगा।

पॉच दशक का अध्ययन

पॉच दशक के अध्ययन  के अनुसार चौराबाड़ी ग्लेशियर औसतन 6.53 मीटर (21.4 फिट) पीछे खिसक गया था। हिमलयी ग्लेशियरों पर हुए अध्ययन पर गौर करें तो पिछले दस वर्षों में 67 फीसदी ग्लेशिर मौजूद हैं।जो कि 38000 वर्ग km  क्षेत्रफल में फैले हुए हैं। 19वीं शताब्दी के मुकाबले ग्लेशियरों की मोटाई 50 से 80 मीटर तक कम हो गयी है।
उत्तराखंड पर उच्च हिमलयी क्षेत्र में बने  ग्लेशियर  झीलों और अन्य झीलों का कितना खतरा मंडरा रहा है , यह केदारनाथ घाटी में 16 -17 जून को आयी आपदा में देखा जा सकता है। कई साल चौरबाड़ी झील की निगरानी कर रहे वैज्ञानिकों का कहना था रिकार्ड तोड़ बारिश के कारण झील में पानी खतरे के निशान से ऊपर चला गया था , जिसके कारण  झील  का वह हिस्सा जो मिट्टी के पहाड़ से बना था , वह  टूट गया। वैज्ञानिकों ने इस आशंका को निर्मूल बताया की झील में कोई ग्लेशियर टूट कर गिरा था।
क्योकि कई सालों से वाडिया हिमालयन ऑफ जियोलॉजी, चौराबाड़ी झील की निगरानी कर रहा था। जब झील टूटी तो जन सामान्य अलर्ट करने का समय नही मिल पाया था । जो की साफ - साफ देखा गया था जिस कारण बहुत से लोगो को बचाया नही जा सका। परन्तु इसके बावजूद भी वह के लोगों और इंडियन आर्मी  की मद्त से बहुत से लोगो की जान बचाने में कामयबी हासिल कि।
यह झील कम से कम डेढ़ किलोमीटर में फैली और कहीं - कहीं  पर तो 50 मीटर तक गहरी थी।आपदा आने से पहले मई में मुश्किल डेढ़ मीटर पानी था। इसके बावजूद भी यह आशंका थी कि कहीं यह झील पानी से पूरी तरह भर गई तो हालत बिगड़ सकती है। परन्तु इसके निगरानी से जुड़े वैज्ञानिको  के अनुसार पिछले कई सालों से इस झील में पानी की मात्रा में कोई परिवर्तन नही देखा गया था। परंतु  16 - 17 जून को जो हुआ वह अप्रत्याशित था।वैज्ञानिको के अनुसार भरी बारिश के कारण झील में तेजी से पानी भरा।और भारी बारिश के कारण बर्फ भी तेजी से पिघली।  जिस कारण  झील में पानी लबालब भरा और मिट्टी वाला हिस्सा टूट जाने से इस झील ने एक दैत्यकारी रूप ले लिया और पूरे केदारनाथ को तबाह कर दिया। 

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