Wednesday 22 February 2017

the history of Nanda Devi Rajjat (नंदा देवी राजजात)


नन्दा देवी राजजात भारत के उत्तराखंड राज्य में होने वाली एक नन्दा देवी की एक धार्मिक यात्रा है। यह उत्तराखंड  के कुछ सर्वाधिक प्रसिद्ध सांस्कृतिक में से एक है। यह लगभग 12 वर्षों के बाद आयोजित होती है। अन्तिम जात 2014 हुयी थी। अगली राजजात सन् 2026 में होगी ।
इस यात्रा में लगभग 240  किलोमीटर की दूरी , नौटी से होमकुण्ड तक पैदल करनी पड़ती है। तथा जंगलो में पथरीले मार्गों एवं दुर्गम चोटियों और बर्फीले पहाड़ों से गुजरना पड़ता है। इस महापर्व में अलग-अलग रास्तों से ये डोलियाँ यात्रा में मिलती है। इसके अलावा गाँव-गाँव से डोलियाँ और छतौलियाँ भी इस यात्रा में शामिल होती है। कुमाऊँ अल्मोडा, कटारमल और नैनीताल से भी डोलियाँ नन्दकेशरी में आकर राजजात में शामिल होती है। नौटी से शुरू हुई इस यात्रा का दूसरा पड़ाव इड़ा-बधाणीं में होता है।  तथा फिर यात्रा लौठकर नौटी आती है। इसके बाद कासुंवा, सेम, कोटी, भगौती, कुलसारी,चैपडों, लोहाजंग, वाँण, बेदनी, पातर नचौणियाँ से विश्व-विख्यात रूपकुण्ड, शिला-समुद्र, होमकुण्ड से चनण्याँघट (चंदिन्याघाट), सुतोल से घाट होते हुए नन्दप्रयाग और फिर नौटी आकर यात्रा पूरी हो जाटी है। इस यात्रा की दूरी करीब 280 किलोमीटर है।
 सबसे महत्वपूण बात यह है कि इस राजजात में चौसिंग्या खाडू़ (चार सींगों वाला भेड़) भी शामिल किया जाता है जोकि स्थानीय क्षेत्र में राजजात का समय आने के पूर्व ही पैदा हो जाता है, उसकी पीठ पर रखे गये दोतरफा थैले में श्रद्धालु गहने, श्रंगार-सामग्री व अन्य हल्की भैंट देवी के लिए रखते हैं, जोकि होमकुण्ड में पूजा होने के बाद उसे छोड़ दिया जाता है इसके बाद वह आगे हिमालय की ओर प्रस्थान कर लेता है। लोगों की मान्यता है कि चौसिंग्या खाडू़ बिकट हिमालय में जाकर लुप्त हो जाता है व नंदादेवी के क्षेत्र कैलाश में प्रवेश कर जाता है। इस माह पर्व  में चौसिंग्या खाडू का एक विशेष स्थान दिया गया है।
मान्यताओं के अनुसार राजजात तब होती है जब देवी का  प्रकोप लगने के लक्षण दिखाई देते हैं। काशुओ के कुंवर (राज वंशज) नौटी गाँव जाकर राजजात की मनौती करते हैं। कुंवर रिंगाल की छतोली (छतरी) और चौसिंग्या खाडू़ (चार सींगों वाला भेड़) लेकर आते हैं। चौसिंगा खाडू का जन्म लेना राजजात की एक खास बात है। नौटियाल और कुँवर लोग नन्दा के उपहार को चौसिंगा खाडू की पीठ पर होमकुण्ड तक ले जाते हैं। वहाँ से खाडू अकेला ही आगे बढ़ जाता है। खाडू के जन्म साथ के ही विचित्र चमत्कारिक घटनाये शुरु होनी  हो जाती है। जिस गौशाला में यह जन्म लेता है उसी दिन से वहाँ शेर आना प्रारम्भ कर देता है और जब तक खाडू़ का मालिक उसे राजजात को अर्पित करने की प्रतिज्ञा नहीं रखता तब तक शेर लगातार आता ही रहता है।
 चौसिंग्या खाडू के नेतृत्व में चलने वाली यह  यात्रा  दुनियां की दुर्गमतम्, जटिलतम और विशालतम् धार्मिक पैदल यात्राओं में सुमार है यह यात्रा पुरे 19 दिनों तक चलती है। खतरनाक पहाड़ी चढ़ाई वाले रास्तों से गुजरने वाली यह दुर्गम यात्रा न केवल पैदल तय करनी होती है बल्कि 53 किमी तक इसमें नंगे पांव भी चलना होता है। इतिहासकारों के अनुसार धार्मिक मनोरथ की पूर्ति और इस यात्रा को सफल बनाने के लिये प्राचीनकाल में नरबलि की प्रथा थी जो कि अंग्रेजी हुकूमत आने के बाद 1831 में प्रतिबन्धित कर दी गयी। उसके बाद अष्टबलिकी प्रथा काफी समय तक चलती रही। इतिहासकार डॉ॰ शिवप्रसाद डबराल और डॉ॰ शिवराज संह रावत ”निसंग” के अनुसार नरबलि के बाद इस यात्रा में 600 बकरियों और 25 भैंसों की बलि देने की प्रथा चलती रही मगर इसे भी 1968 में समाप्त कर दिया गया। नन्दा देवी राजजात के बारे में उत्तराखण्ड के विभिन्न खण्डों में गढ़वाल का इतिहास लिखने वाले प्रख्यात इतिहासकार डॉ॰ शिप्रसाद डबराल ने ”उत्तराखण्ड यात्रा दर्शन” में लिखा है कि नन्दा महाजाति खसों की आराध्य देवी है। ब्रिटिश काल से पहले प्रति बारह वर्ष नन्दा को नरबलि देने की प्रथा थी। बाद में इस प्रथा को बन्द कर दिया गया मगर ”दूधातोली प्रदेश में भ्रमण के दौरान मुझे सूचना मिली कि उत्तर गढ़वाल के कुछ गावों में अब नर बलि ने दूसरा रूप धारण कर लिया। प्रति 12 वर्ष में उन गावों के सयाने लोग एकत्र हो कर किसी अतिवृद्ध को नन्दा देवी को अर्पण करने के लिये चुनते हैं। उचित समय पर उसके केश, नाखून काट दिये जाते हैं। और उसे स्नान करा कर तिलक लगाया जाता है, फिर उसके सिर पर नन्दा के नाम से ज्यूंदाल (चांवल, पुष्प, हल्दी औरजल मिला कर) डाल देते हैं। उस दिन से वह अलग मकान में रहने लगता है और दिन में एक बार भोजन करता है। उसके परिवार वाले उसकी मृत्यु के बाद होने वाले सारे संस्कार पहले ही कर डालते हैं। वह एक वर्ष के अन्दर ही मर जाता है।


इस पैदल यात्रा में उच्च हिमालय की ओर चढ़ाई चढ़ते जाने के साथ ही यात्रियों का रोमांच  और भी बढ़ता जाता है। इसका पहला पड़ाव 10 किलोमीटर पर ईड़ा बधाणी है। उसके बाद दो पड़ाव नौटी में होते हैं। नौटी के बाद सेम, कोटी, भगोती, कुलसारी, चेपड़ियूं, नन्दकेशरी, फल्दिया गांव, मुन्दोली, वाण, गैरोलीपातल, पातरनचौणियां होते हुये यात्रा शिलासमुद्र होते हुये अपने गन्तव्य होमकुण्ड पहुंचती है। इस कुण्ड में पिण्डदान और पूजा अर्चना के बाद चौसिंग्या खाडू को हिमालय की चोटियों की ओर विदा करने के बाद यात्रा नीचे उतरने लगती है। उसके बाद यात्रा सुतोल, घाट और नौटी लौट आती है। इस यात्रा के दौरान लोहाजंग ऐसा पड़ाव है जहां आज भी बड़े पत्थरों और पेड़ों पर लोहे के तीर चुभे हुये हैं। कुछ तीर संग्रहालयों के लिये निकाल लिये गये हैं। परन्तु कुछ अभी भी वहा दिखायी देते है।  ऐसा लगता  है कि कभी इस स्थान पर भयंकर युद्ध हुआ होगा। इसी मार्ग पर 17500 फुट की ऊंचाई पर ज्यूंरागली भी है जिसे पार करना बहुत ही जोखिम का काम है। इतिहासकार मानते हैं कि कभी लोग स्वर्गारोहण की चाह में इसी स्थान से महाप्रयाण के लिये नीचे रूपकुण्ड की ओर छलांग लगाते थे। यमुना दत्त वैष्णव ने इसे मृत्यु गली की संज्ञा दी है। यहां से नीचे छलांग लगाने वालों के साथ ही दुर्घटना में मारे गये सेकड़ों यात्रियों के कंकाल नीचे रूपकुण्ड में मिले हैं जिनकी पुष्टि डीएनए से हुयी है। इसके बाद यात्रा शिला समुद्र की ओर नीचे उतरती है। राजजात के मार्ग में हिमाच्छादित शिखरों से घिरी रूपकुण्ड झील है जिसके रहस्यों को सुलझाने के लिये भारत ही नहीें बल्कि दुनियां के कई देशों के वैज्ञानिक दशकों से अध्ययन कर रहे हैं। समुद्रतल से 16200 फुट की उंचाई पर स्थित रूपकुण्ड झील के आस पास अभी भी  कंकालों के साथ टी आभूषण, राजस्थानी जूते, पान सुपारी, के दाग लगे दांत, शंख, शंख की चूड़ियां आदि सामग्री बिखरी पड़ी है। इन कंकालों के परीक्षण से जो बात चौंकाने वाली सामने आई है यह है कि ये कंकाल 9वीं सदी के हैं तथा ये लगभग सभी एक ही समय में मरे हुये लोगों के हैं। इनमें स्थानीय लोगों के कंकाल बहुत कम हैं। बाकी लगभग सभी एक ही प्रजाति के हैं। इनमें दो खोपड़ियां ऐसी भी मिली थी। जो कि महाराष्ट्र की एक खास ब्राह्मण जाति के डीएनए तथा सिर के कंकाल की बनावट से मिलते हैं। कहा जाता है कि ये कंकाल यशोधवल, उसकी रानियों, नर्तकियों, सैनिकों, सेवादारों या कहारों और साथ में चल रहे दो ब्राह्मणों के रहे होंगे।

No comments:

Post a Comment

2021 Pan America

Harley Davidson pan America come in market with revolution max engine, with 1249cc, this is the first off roading bike in Harley Davidson hi...